सर्वे प्रपत्तेरधिकारिणो मता:

आध्यात्मिक चेतना, दार्शनिक विचार, सामाजिक सेवा के उद्देश्य से जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामभद्राचार्य जी महाराज ने एक समर्पित संगठन की आवश्यकता अनुभूत की। 15 दिसम्बर 2021 को श्री गुरु शरणानन्द जी महाराज, शंकराचार्य वासुदेवानन्द जी महाराज, रामानुजाचार्य चिन्नाजियर स्वामी, श्री श्री रविशंकर जी महाराज, साध्वी ऋतंभरा, मलूकपीठाधीश्वर राजेन्द्र दास जी महाराज, ब्रहमेश्वरानन्द आचार्य, रमेश भाईजी ओझा, अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष सहित  देश के प्रतिष्ठित संतों की सन्निधि में तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक आदरणीय मोहन जी भागवत की उपस्थिति में रामानन्द मिशन की स्थापना की गई। आद्य जगद्गुरु रामानंदाचार्य जी से लेकर वर्तमान रामानंदाचार्य पूज्यपाद गुरुदेव के विचारों को पूरी दुनिया में प्रसारित करने के साथ ही रामानन्द मिशन के पाँच उद्देश्य घोषित किए गए- शिक्षा, संस्कार, संस्कृति, सेवा और समरसता।

 

आद्य रामानंदाचार्य जी ने अपने समय की धार्मिक और सामाजिक कुरीतियों और विकृतियों को दूर करने के लिए “सर्वे प्रपत्तेरधिकारिणो मता:” अर्थात ‘प्रपत्ति का अधिकार सभी को है’ का सिद्धांत दिया। अपने इस सिद्धांत को व्यावहारिक रूप में प्रस्तुत करते हुए उन्होंने तत्कालीन समाज के सभी वर्गों से अपने शिष्य बनाए। उनके बारह शिष्यों श्री अनन्तानन्दाचार्य, श्री सुरसुरानंद जी, श्री सुखानन्द जी, श्री नरहर्यानंद जी, श्री योगानंद जी, श्री पीपा जी, श्री कबीर दास जी, श्री भावानन्द जी, श्री सेन जी, श्री धन्ना जी, श्री गालवानन्द जी तथा श्री रैदास जी को ‘द्वादश महाभागवत’ कहा गया। आज जब सनातन धर्म को कमजोर करने के लिए भेदभाव के आक्षेप लगाए जा रहे हैं तब रामानन्द सम्प्रदाय की वैचारिक विभूति को सामने लाए जाने की आवश्यकता है। यह हमारा सौभाग्य है कि हमको चतुर्थ जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामभद्राचार्य जी महाराज का भौतिक सानिध्य प्राप्त हुआ है। उनके क्रान्तिकारी विचारों को विश्व के समक्ष प्रस्तुत करने की महती आवश्यकता है।

 

रामानन्द सम्प्रदाय अपनी स्थापना से ही शिक्षा को हिन्दू समाज के उद्धार का सबसे प्रमुख उपकरण मानता रहा है। यहीं कारण है कि प्रस्थानत्रयी (ब्रह्मसूत्र, उपनिषद, श्रीमदभागवतगीता) भाष्यकार होना रामानंदाचार्य परम्परा का आचार्य होने के लिए आवश्यक अर्हता है। वर्तमान रामानंदाचार्य पूज्यपाद जगद्गुरु स्वामी प्रस्थानत्रयी भाष्यकार होने के साथ ही 230 से अधिक पुस्तकों के रचयिता हैं। यह गर्व का विषय है कि रामानन्द सम्प्रदाय के वर्तमान आचार्य दर्शन और साहित्य के क्षेत्र में परंपरागत तथा आधुनिक दोनों ही जगत में समादृत हैं। शिक्षा को प्राथमिकता देते हुए पूज्यपाद ने जब दिव्यान्ग सेवा का विचार किया तब सबसे पहले श्री तुलसी प्रज्ञाचक्षु दिव्यान्ग उच्चतर माध्यमिक विद्यालय और जगद्गुरु रामभद्राचार्य दिव्यान्ग विश्वविद्यालय की स्थापना किया। उनके इस प्रयास को आगे बढ़ाना रामानन्द मिशन अपना दायित्व समझता है।

 

वर्तमान समाज अनेक जटिलताओं से गुजर रहा है। समाज में नए नए अपराध जन्म ले रहे हैं। उन अपराधों का सामना करने के लिए नई-नई विधियाँ विकसित की जा रही हैं। यह साँप गुजर जाने के पश्चात लकीर पीटने जैसा कार्य है। समस्या का वास्तविक समाधान नैतिक मूल्यों और संस्कार के विकास में है। यदि प्रत्येक व्यक्ति संस्कारित होगा तो उसकी समष्टि समाज स्वयमेव संस्कारित हो जाएगी। यहीं संस्कारित सामूहिक चेतना ही मानवता को  “भारतीय परम वैभव” से होते हुए “वसुधैव कुटुंबकम” तक पहुंचा सकती है।

 

सामूहिक संस्कार से ही हमारी संस्कृति का विकास होता है। क्योंकि हमारे संस्कार ही हमारा रहन-सहन, भेष-भूषा, खान-पान, बोली-बानी, सोच-समझ को तय करते हैं। आज समाज तीव्र संक्रमण की आंधी का सामना कर रहा है। इस आंधी में वहीं समाज अपनी वास्तविक पहचान के साथ खड़ा रह सकता है जिसके अंदर झंझावातों को झेलने की क्षमता हो। कृत्रिम बुद्धिमत्ता, रोबाटिक्स और बायो टेक्नॉलजी के कालखंड में अपने विवेक को जीवित रखना सबसे बड़ी चुनौती है। संस्कृति को प्रभावी संस्कृति के आक्रमण का सामना करना पाद रहा है। ऐसे में सनातन धर्म के मूल्यों को संरक्षित रखना अति आवश्यक है। हमारे साथ भारतीय ज्ञान के अभिलेखागार पूज्य गुरुदेव का आशीर्वाद है। ज्ञान के इस वटवृक्ष के छाए से मानवता को शीतलता प्रदान करने को रामानन्द मिशन अपना मूल कर्तव्य समझता है।

 

संस्कृति का संरक्षण समाज के प्रति सेवाभाव से ही किया जा सकता है। सेवा का दोहरा लाभ है- एक तो इससे सामाजिक सहअस्तित्व का विकास होता है दूसरे पूज्यपाद के शब्दों में स्वयं की आत्मा पर पड़ी धूल भी साफ होती है। पूज्य गुरुदेव ने रामानन्द मिशन को सेवा के तीन स्तरों पर कार्य करने के लिए निर्देशित किया है- प्रथम सामान्य सेवा जैसे भूखे को भोजन कराना, द्वितीय मध्यम सेवा जैसे उसको भोजन उत्पादित करने में समर्थ बनाना, तृतीय उत्तम सेवा जैसे व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति करवाना। मिशन ने तीनों ही स्तरों पर कार्य प्रारम्भ कर दिया है।

 

व्यक्ति और समाज दोनों के अंदर समरसता की स्थापना रामावत मार्ग का सबसे प्रमुख उद्देश्य है। हम गोस्वामी जी के अनुयायी व्यक्ति की ज्ञान-इच्छा-क्रिया को समरस बनाने के लिए प्रयासरत हैं साथ ही समाज के विभिन्न घटकों में समरसता स्थापित कर सामूहिक प्रयास को मानवता के कल्याण की दिशा में उन्मुख करने में संलग्न हैं।        

उद्देश्य

जिस प्रकार भगवान विष्णु ने अलग-अलग समय में और अलग-अलग रूपों में जन्म लेकर पृथ्वी के साथ-साथ अखिल ब्रह्माण्ड का उद्धार किया उसी प्रकार रामानन्द मिशन भी भगवान श्री रामचन्द्र  के नाम जप और संकीर्तन के माध्यम से अखिल विश्व के कल्याण के लिए उधृत है।जिस प्रकार भारतीय सन्त परम्परा में जन्मे किसी भी सन्त महात्मा का उद्देश्य जगत कल्याण का होता है ठीक उसी प्रकार स्वामी रामानन्दाचार्य जी के द्वारा स्थापित रामनन्दाचार्य वैष्णव सम्प्रदाय के पांचवें जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य के अनुदेशन और स्वामित्व में स्थापित रामनन्द मिशन संस्था का उद्देश्य भी भारत ही नहीं अखिल विश्व का सर्वांगीण विकास है , जिसका केंद्र बिंदु हमारा भारतवर्ष ही होगा ऐसा इसलिए क्योंकि भारतवर्ष के पांचो तत्व और परातत्वों ने स्वयं भगवान के अवतारों की सेवा का सौभाग्य प्राप्त किया है।

 

रामानन्द मिशन संस्था का मुख उद्देश्य निम्नवत है-

1-भगवद्भक्ति आधारित ज्ञान का विकास

2-वेद, पुराण, शास्त्र, उपनिषद, रामचरितमानस तथा अन्य विशेष वैज्ञानिक पुस्तकों पर आधारित विज्ञान का विकास

3-भारत वर्ष के गौरवगान तथा कथा के माध्यम से अखिल विश्व को भारत की दिव्यता और भव्यता का ज्ञान करना

4-भारतवर्ष के गौरवचिन्हों की पुनर्स्थापना करना।

5-भक्ति-भाव का प्रचार प्रसार करना जिससे की कलिकाल का प्रभाव सीमित हो सके।

Scroll to Top